Uniform Civil Code: जानिए,समान नागरिक संहिता को कौन सी पार्टी समर्थन करती है ?
लोकसभा चुनाव से पहले ही समान नागरिक संहिता क्यों लागू की गई ?

देश में फिलहाल समान नागरिक संहिता एक बड़ा मुद्दा बन गया है। भाजपा, आप और जदयू सहित कुछ पार्टियां जहां इसका समर्थन कर रही हैं वहीं कुछ पार्टियां लगातार इसका विरोध भी कर रही हैं। यूसीसी को लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का कहना है कि अगर कुछ चीजें स्पष्ट हो जाए तो हम अपना रुख तय कर सकते हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ा दांव खेलने जा रही है. सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार आगामी मॉनसून सत्र में समान नागरिक संहिता का बिल संसद में पेश कर सकती है.
जब से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से भारत में समान नागरिक संहिता की वकालत की है, तब से यह चर्चा जोरों पर है कि केंद्र की भाजपा सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस प्रस्ताव को लागू करने की कोशिश कर सकती है।
सूत्रों के मुताबिक सरकार ने संसद के मॉनसून सत्र में समान नागरिक संहिता बिल लाने की तैयारी कर ली है. समान नागरिक संहिता कानून संबंधी बिल संसदीय समिति को भी भेजा सकता है।
3 जुलाई को बुलाई बैठक
समान नागरिक संहिता को लेकर सांसदों की राय जानने के लिए संसदीय स्थायी समिति की 3 जुलाई को बैठक बुलाई गई है. इस मुद्दे पर विधि आयोग, कानूनी मामलों के विभाग और विधायी विभाग के प्रतिनिधियों को बुलाया है. 14 जून को विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता पर आम लोगों से सुझाव मांगने के मुद्दे पर इन तीनों विभागों के प्रतिनिधियों को बुलाया गया है।
क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता में सभी धर्मों के लिए एक कानून की व्यवस्था होगी. हर धर्म का पर्सनल लॉ है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियो के लिए अपने-अपने कानून हैं. UCC के लागू होने से सभी धर्मों में रहने वालों लोगों के मामले सिविल नियमों से ही निपटाए जाएंगे. UCC का अर्थ शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना होगा।
पीएम ने खुद किया था जिक्र
कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में समान नागरिक संहिता (UCC) का मुद्दा छेड़कर पूरे देश में इसे लेकर चर्चा छेड़ दी थी. अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा था. भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है… सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि समान नागरिक संहिता (UCC) लाओ… लेकिन ये वोटबैंक के भूखे लोग… वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने पसमंदों मुसलमानों का शोषण किया है लेकिन उनकी कभी चर्चा नहीं हुई. उन्हें आज भी बराबरी का हक़ नहीं मिलता.. भारत के मुसलमान भाई बहनों को ये समझना होगा कि कौन से राजनीतिक दल उनको भड़का कर उनका राजनीतिक फायदा ले रहे हैं. हम देख रहे हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भड़काने का काम हो रहा है. एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा तो घर चल पायेगा क्या? तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा?
इस्लामिक देशों में भी लागू है UCC
मुस्लिम देशों में पारंपरिक रूप से शरिया कानून लागू है, जो धार्मिक शिक्षाओं, प्रथाओं और परंपराओं से लिया गया है. न्यायविदों द्वारा आस्था के आधार पर इन कानून की व्याख्या की गई है. हालांकि, आधुनिक समय में इस तरह के कानून में यूरोपीय मॉडल के मुताबिक कुछ संशोधन किया जा रहा है. दुनिया के इस्लामिक देशों में आमतौर पर पारंपरिक शरिया कानून पर आधारित नागरिक कानून लागू हैं. इन देशों में सऊदी अरब, तुर्की, सऊदी अगर, तुर्की, पाकिस्तान, मिस्र, मलेशिया, नाइजीरिया आदि देश शामिल हैं. इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए समान कानून हैं. किसी विशेष धर्म या समुदाय के लिए अलग-अलग कानून नहीं हैं.
इनके अलावा इस्राइल, जापान, फ्रांस और रूस में समान नागरिक संहिता या कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून हैं. यूरोपीय देशों और अमेरिका के पास एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है फिर चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.
यूसीसी वर्षों से भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में एक प्रमुख मुद्दा रहा है। हालांकि, अखिल भारतीय कानून बनने से पहले इसे संसद की परीक्षा पास करनी होगी। बीजेपी के लिए लोकसभा में यूसीसी बिल पास कराना आसान होगा, क्योंकि निचले सदन में उसके पास प्रचंड बहुमत है. ऐसे में सबकी नजरें राज्यसभा पर होंगी, जहां बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ बहुमत के आंकड़े से महज कुछ कदम पीछे है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने यूसीसी को सैद्धांतिक समर्थन देकर बीजेपी को बड़ी उम्मीद दी है. लेकिन क्या AAP का समर्थन यूसीसी बिल को राज्यसभा से पारित कराने के लिए पर्याप्त होगा?
अन्य सहयोगियों को मिलाकर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास राज्यसभा में कुल 109 सदस्य हैं. इसका मतलब यह है कि समान नागरिक संहिता विधेयक को उच्च सदन में सफलतापूर्वक पारित होने के लिए 10 और सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी। जब तटस्थ दलों की बात आती है, तो बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस दोनों के पास राज्यसभा में 9-9 सदस्य हैं। यदि वे दोनों यूसीसी पर भाजपा का समर्थन करने का निर्णय लेते हैं, तो उसे राज्यसभा में यूसीसी विधेयक पारित करने के लिए आवश्यक बहुमत आसानी से मिल जाएगा।
हालांकि, सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की पार्टी अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को देखते हुए राज्यसभा में यूसीसी बिल का समर्थन नहीं करेगी, जिसका प्रभावी अर्थ यह है कि बीजेपी 1 वोट से कम रह जाएगी, भले ही बीजेडी सदन में इसका समर्थन करती है. यही वजह है कि यूसीसी बिल को राज्यसभा में पास कराने में आम आदमी पार्टी तुरुप का इक्का साबित हो सकती है. राज्यसभा में 10 सीटों (दिल्ली से 3, पंजाब से 7) के साथ अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी का समर्थन भाजपा को संसद में यूसीसी को मंजूरी देने में मदद कर सकता है।